गुरुवार, 10 सितंबर 2015

Parmatma ka anubhav - Tum

Dedicated to my beloved Master....


मेरा यार तुम, मेरा प्यार तुम
गुरुओ में चेतना का अंतिम शिखर तुम
ऊठती-गिरती वासनाओ का परिहार तुम
मुझ पत्थर पर प्रभावशाली प्रहार तुम

जब जब तुम में खो जाऊ
अस्तित्व की जीत तुम
जब जब तुम से अलग रहू
मेरे अहम से दूर तुम

तृष्णाओ की मधुशाला से
कर दो मुझे आजाद तुम
सब के बाद बची हुई,
फिर भी आखिरी मुराद तुम

मेरी तरलता की नियति तुम
मेरी चपलता की ज्योति तुम
अब समां लो असमय में
मैं तेरी प्रतीक्षा में गुम-सुम

मेरे प्राण तुम, मेरा रास तुम
मेरे ध्यान का मधुमास तुम
अपने हाथों में मेरा हाथ लिए
फिर फिर से रहो मेरे साथ तुम

मेरे प्यार का साज तुम
मेरी शुद्धता का ताज तुम
जल, थल, वायु, अगन से
सम्मानित मेरा आकाश तुम

मेरी वीणा का राग तुम,
मेरे ह्रदय का अनुराग तुम
संकोच को जलानेवाली आग तुम
परमात्मा का अनुभव तुम

मेरी प्यास तुम, मेरी आस तुम
मेरे जीवन का प्रयास तुम
मेरे पास तुम, मेरी सांस तुम
मेरे जीवन का प्रवास तुम