खुली आँखों से आज तुम्हे ख्वाब में देखा, और
मेरे नए घर बुलाना चाहा
एक मंजर, एक जमाना, अब कोई भी पीछे नहीं खींच रहा|
अब नहीं रहती उन गलियों में, जहाँ पहले रहती थी
अब नहीं जलती उन ज्वालाओं में, जिनमे पहले भुन
जाती थी
ख़ुशी हैं मुझे, खुद के साथ, अब कोई कडवा किनारा
न रहा |
पीछे छोड़ आई हूँ वो जाल-जंजाल, तेरे इंतजार के
पल और तेरे माल-मलाल
अब जीवन लगता हैं सफल, अभी यहाँ हैं आर पार,
बिना तकरार
पाया हैं उसे हमेशा से, उस, मेरे मुर्शिद से
दूरी का बहाना न रहा |
तूने भी तो अब अपनी राह पा ली होगी, खानाबदोश
आसमान की तरह
कभी बुलाया था मैंने तुझे, अजीज मेहमान की तरह
बिखरी हवाओं की तरह, तेरी खबर, तेरा ठिकाना न
रहा
तूने भी तो पाया होगा मुर्शिद को, इच्छाओं के
रस्ते से हटकर
तूने भी तो जगाया होगा रातो को, कभी कासानोवा,
कभी बुद्ध बनकर
तेरी डगर का मेरे आसमान में, कहीं भी कोई सुराग
न रहा
खुली आँखों से आज तुम्हे ख्वाब में देखा, और
मेरे नए घर बुलाना चाहा
एक मंजर, एक जमाना, अब कोई भी पीछे नहीं खिंच रहा|