I wrote this today, in response to another blog by a blogger friend Nilesh Ranjan..Here is the link to his blog.
http://randomwithlife.com/2015/11/02
फिर कुछ उभरा होगा अपने
ही अंत की राख से
फिर पत्तों की पांजेब
बजी होगी, ठूंठ जैसे शाख से
फिर उमड़ा होगा सैलाब,
रुके हुए किनारों से
फिर चल पड़ा होगा जीवन,
नयी आशा की किरणों से ||
यही हैं जीवन, यही हैं
मरण, यही हैं यात्रा
आदि से अनंत तक, अनंत मरणों
की जत्रा
फिर चलती हैं राहें जीवन
की, रुकी हुई साँसे
फिर चलते हैं अर्जुन के
साथ साथ, शकुनी के पांसे ||
यूँ ही चलेगा आवागमन का
खेल
जब तक न हो जाए ओंकारसे
ताल-मेल
फिर न होगा आना-जाना, न
ही आदि-अंत
रुकेंगे स्वर्ग के द्वार
पर – बुद्ध जैसे महंत ||