गुरुवार, 12 नवंबर 2015

अंत (The End)


I wrote this today, in response to another blog by a blogger friend Nilesh Ranjan..Here is the link to his blog.

http://randomwithlife.com/2015/11/02

फिर कुछ उभरा होगा अपने ही अंत की राख से
फिर पत्तों की पांजेब बजी होगी, ठूंठ जैसे शाख से
फिर उमड़ा होगा सैलाब, रुके हुए किनारों से
फिर चल पड़ा होगा जीवन, नयी आशा की किरणों से ||

  

यही हैं जीवन, यही हैं मरण,  यही हैं यात्रा
आदि से अनंत तक, अनंत मरणों की जत्रा
फिर चलती हैं राहें जीवन की, रुकी हुई साँसे
फिर चलते हैं अर्जुन के साथ साथ, शकुनी के पांसे ||



यूँ ही चलेगा आवागमन का खेल
जब तक न हो जाए ओंकारसे ताल-मेल
फिर न होगा आना-जाना, न ही आदि-अंत
रुकेंगे स्वर्ग के द्वार पर – बुद्ध जैसे महंत ||


शनिवार, 7 नवंबर 2015

yahi hun main

Written in 2003
यहीं हूँ मैं, किसी प्यार का ख़याल हूँ
यहीं हूँ मैं, किसी मन का जंजाल हूँ

यहीं हूँ मैं,  एक तपती आग हूँ
यहीं हूँ मैं, एक होश का चिराग हूँ,

यहीं हूँ मैं, एकांत का विस्तार हूँ,
यहीं हूँ मैं, ‘अभी-यहाँ’ पर सवार हूँ,

यहीं हूँ मैं, एक अनंत तड़प हूँ,
यहीं हूँ मैं, एक निरंतर सड़क हूँ

यहीं हूँ मैं, एक असीम अँधेरा हूँ,
यहीं हूँ मैं, एक चिरंतन सवेरा हूँ

यहीं हूँ मैं, एक सनातन यात्रा हूँ
यहीं हूँ मैं, जीवनशाला की छात्रा हूँ

यहीं हूँ मैं, एक विशाल धरा का हिस्सा हूँ,
यहीं हूँ मैं, एक अनादि, अनंत किस्सा हूँ,

यहीं हूँ मैं, अभी भी यहीं हूँ मैं,
वही पुरानी बुद्दू सी, इस पार हूँ मैं