मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

करती हूँ - Yes I do... :)


तन की शहनाई, मन की गहराई

अब में तुझको समर्पित करती हूँ

तेरी ही प्रतीक्षा में, तेरे मिलन तक

अब अपनी पात्रता अर्जित करती हूँ



दो शब्दों के बिच की तन्हाई

अब में तझको अर्पित करती हूँ

तेरे साथ जो हुई आँखमिचौनी

अब में उसको चर्चित करती हूँ



कहते होंगे तुझको आलसी

या फिर स्लो तेरे घरवाले

लेकिन, Thoughtful Work-In-Progress

आज में तुझको घोषित करती हूँ



कितना दूर तू, कितना पास तू

अनचली पगडंडी का प्रमाण तू

तेरे ही साथ के सपनो में

अब में पुण्य संचित करती हूँ



मन भावन तू, घना सावन तू

तुझ ही में सिमटने की

अब में गुजारिश करती हूँ


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