गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

Sanyas mere osho ka

Dedicated to my sannyas-deeksha day - 29th October 1989

संन्यास मेरे ओशो का
मेरे सत्य की खोज है
'आ अब लौट चले ' कहनेवाले
मांझी की प्यारी नौका और मौज है
...

संन्यास मेरे ओशो का
मेरे समर्पण का आरंभ है
ओशो की ध्यान-वाणी में
भीगा यहाँ राव और रंक है

संन्यास मेरे ओशो का
मेरे सत्त्व और चित्त की शुद्धि है
तेजोमय होती जहा
चित्त की चेतना में वृद्धि है

संन्यास मेरे ओशो का
भूत और भविष्य से मुक्ति है
ध्यान करो और फल पाओ
पूरी  वैज्ञानिक यहाँ भक्ति है

संन्यास मेरे ओशो का
मेरे अस्तित्व का दर्पण है
हो जाता है यहाँ
अपने दर्प का तर्पण है

संन्यास मेरे ओशो का
एक अखंड, प्रचंड, प्रसन्न, संपन्न
व्यक्ति होने की यात्रा है
ध्यान की उर्जा और ZEN-STICK
यहाँ इस वैद्य की मात्रा  है

संन्यास मेरे ओशो का
अटूट प्रेमबंधन की शक्ति है
संन्यास मेरे ओशो का
परम सुन्दरता की अभिव्यक्ति है

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

Ai Ri Amrita


As an ardent fan of Amrita Pritam, I wrote this for her -  on 7-Sept-2014


ऐ री अमृता!!
तेरा अक्षरनामा  सज-धज के  आता हैं, किताबों से उठकर |
बरसता हैं आंखो से, तेरी सोहबत की बारिश बनकर|


ऐ री अमृता!!
क्या जानु मैं तू क्या लगती हैं मेरी, तेरे शब्दों मे खोकर| 
समय की दीवारें ढह जाती हैं, तुझको-मुझको जोडकर|


ऐ री अमृता!! मुझे निखार दे अपनी बेटी बनाकर|
बाहों मे सुलाकर, बरखा मे भिगोकर, खुशियों की पेटी बनाकर|

ऐ री अमृता!! 
जब जब तुझ से मिलती हूँ, पाठक/वाचक बनकर|
तू समा लेती हैं मुझको अपने आसमान मे, खुद का हिस्सा बनाकर|


ऐ री अमृता !
तेरे अल्फाज़ महज अल्फ़ाज़ नहीं, कायनात हैं |
दिलों को पिघलाकर  स्नेहसागर मे गिराना, ये तेरी ही करामात हैं|


ऐ री अमृता!!
तुम्हारे डॉक्टर देव के सजदे मे,  मैं ममता बन गयी|
हद तो तब हो गयी
रसीदी टिकिट पढ़ते पढ़ते, मैं अचानक अमृता अमृता हो गयी|
आंखो से तुम बहने लगी और मेरी अभिव्यक्ति खो गयी|


आंखो मे पानी बनकर ये नामा तुम्हारे लिए लिख रही हूँ|
पानी भी तुम, नामा भी तुम, तुमको ही प्रेम की अभिव्यक्ति बनाकर|

ऐ री अमृता!!
ऐ री अमृता!!

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

Mann mere to thahar jara

मन मेरे तू ठहर जरा, ना जाम छलका अपने भावों के
ना दूर जा भविष्य मे, भावों के और अभावों के
अभी प्रहर बाकी हैं, कर्मो के प्रभावों के
मन मेरे तू ठहर जरा, ना जाम छलका अपने भावों के

ना जा सुदूर भविष्य मे, बहारों के ख्वाबों के,
इस वर्तमान मे बो दे, बीज कल के स्वभावों के
मन मेरे तू ठहर जरा, ना जाम छलका अपने भावों के

ना भागना फिर, अपने ही अस्तित्व की रातों से
ना ही जला लेना खुद को,  किसी की बदसूरत बातों से
मन मेरे तू ठहर जरा, ना जाम छलका अपने भावों के

न बन जीत का पूर्णविराम, न हो शिकार किसी के वारों के
ना ही मील का पत्थर बन, किसी के, ऊधार के गाँवों के
मन मेरे तू ठहर जरा, ना जाम छलका अपने भावों के

ना जा गतकाल मे, जो भोग लिया वो भोग लिया
क्या अब भी असर बाकी हैं,  गुजरी हुई राहों के
मन मेरे तू ठहर जरा, ना जाम छलका अपने भावों के

अब हटा दे इस पल मे, ज़ख़म पुराने, कांटो के  
और पी ले जाम अब, किसी की पाक निगाहों के
मन मेरे तू ठहर जरा, ना जाम छलका अपने भावों के

माँ प्रेम कैलाश
15 अक्तूबर 2015

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

Parvati

पार्वती की यात्रा, अभी पूरी कहाँ हुई?
होश के औषधि की मात्रा, अभी पूरी कहाँ हुई?

ना स्वपन दिखा, किसी शिव-शंकर के
उसके सहवास की पात्रता, अभी पूरी कहाँ हुई?

पहचान ना पाऊँगी उनको, न ही झेल पाऊँगी
मेरी मनीषाओं की, अभी भभूति कहाँ हुई?

ना जला अगन मे, न भटका अवगुण मे
मेरी बरसो पुरानी बेहोशी, अभी भंग कहाँ हुई?

तन के रोग अभी हटे नहीं, मन के रोग अभी छंटे नहीं
गुजरी इतनी राहें मगर, अभी मैं योगी कहाँ हुई?

अभी चालित हूँ, विचलित हूँ, यंत्र संचालित हूँ,
कहाँ प्रेम हैं, और कहाँ शिव, अभी मैं कैलाश कहाँ हुई?

पार्वती की यात्रा, अभी पूरी कहाँ हुई?
होश के औषधि की मात्रा, अभी पूरी कहाँ हुई?


माँ प्रेम कैलाश
13 अक्तूबर 2015